कानपुर में क्यों मनाई जाती है 8 दिनों तक होली, जानें इसका रोचक इतिहास



रंगों का त्यौहार होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे 'होलिका दहन' कहते हैं। दूसरे दिन, जिसे प्रमुखतः 'धुलेंडी' कहते हैं।इस दिन लोग एक दूसरे को रंग और अबीर-गुलाल लगाते हैं। राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही, इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं।
भारत में होली का उत्सव अलग-अलग प्रदेशों में भिन्नता के साथ मनाया जाता है। ब्रज की होली सारे देश के आकर्षण का बिंदु होती है। बरसाने की लठमार होली भी काफ़ी प्रसिद्ध है। इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएँ उन्हें लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं। इसी प्रकार मथुरा और वृंदावन में भी 15 दिनों तक होली का पर्व मनाया जाता है। कुमाऊँ की गीत बैठकी में शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियाँ होती हैं। हरियाणा की 'धुलंडी' में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा है। बंगाल में होली 'दोल जात्रा' नाम से चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। महाराष्ट्र की 'रंग पंचमी' में सूखा गुलाल खेला जाता है, गोवा के 'शिमगो' में जलूस निकालने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है तथा पंजाब के 'होला मोहल्ला' में सिक्खों द्वारा शक्ति प्रदर्शन की परंपरा है। तमिलनाडु का 'कमन पोडिगई' मुख्य रूप से कामदेव की कथा पर आधारित वसंतोत्सव है। मणिपुर में यह पर्व 'याओसांग' नाम से मनाया जाता है जहाँ 'योंगसांग' उस नन्हीं झोंपड़ी का नाम है जो पूर्णिमा के दिन प्रत्येक नगर-ग्राम में नदी अथवा सरोवर के तट पर बनाई जाती है। दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है, छत्तीसगढ़ की 'होरी' में लोक गीतों की अद्भुत परंपरा है और मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है 'भगोरिया' जो होली का ही एक रूप है। बिहार का 'फगुआ' जम कर मौज मस्ती करने का पर्व है।
अब बात देश भर में चल रही होली की उमंग की हो और कानपुर के 'गंगा मेला' का नाम न आये, ये तो हो ही नहीं सकता। भले ही मथुरा या वृंदावन में होलिका दहन से काफी पहले रंग खेलना शुरू हो जाता है लेकिन कानपुर में होली दहन से रंग खेलने का जो सिलसिला शुरू होता है, वह करीब एक हफ्ते चलता है। कानपुर में हफ्ते भर रंग खेलने की ये प्रथा जुड़ी है भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से। आजादी से पहले हटिया, शहर का हृदय हुआ करता था। वहां लोहा, कपड़ा और गल्ले का व्यापार होता था। व्यापारियों के यहां आजादी के दीवाने और क्रांतिकारी डेरा जमाते और आंदोलन की रणनीति बनाते थे। बात सन 1942 की है | होली के दिन हटिया बाजार में मौजूद रज्जन बाबू पार्क में यहां के नौजवान अंग्रेजी हुकूमत की परवाह किए बगैर तिरंगा फहराकर गुलाल उड़ाकर नाच गा रहे थे। तभी अंग्रेजी सरकार को इसकी जानकारी मिल गई। दर्जन भर से ज्यादा अंग्रेज सिपाही घोड़े पर सवार होकर आए और तिरंगे को उतारने लगे। इस पर होली खेल रहे नौजवानों ने उनका विरोध किया। अंग्रेज सिपाहियों ने उन नौजवानों को इस पार्क में घेरकर बुरी तरह से पीटा। तिरंगा फहराने और होली मनाने के कारण गुलाब चंद्र सेठ, बुद्धूलाल मेहरोत्रा, नवीन शर्मा, विश्वनाथ टंडन, हमीद खान और गिरिधर शर्मा सहित करीब 45 लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया।
अंग्रेजो के इस कदम को कानपुर वासियों ने अपना और अपनी संस्कृति का अपमान माना। गिरफ्तारी के विरोध में कानपुर का पूरा बाजार बंद हो गया। कानपुर के मजदूर, साहित्यकार, व्यापारी और आम जनता सभी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। मजदूरों ने भी फैक्ट्री जाने से मना कर दिया। ट्रांसपोर्टरों ने चक्का जाम कर दिया। सरकारी कर्मचारियों ने भी काम बंद कर दिया। शहर की सभी दुकानों पर यहाँ के कारोबारियों ने ताला जड़ दिया। इतना ही नहीं, लोगों ने अपने-अपने चेहरे के रंग भी नहीं उतारे। इस आंदोलन में गणेश शंकर विद्यार्थी, दयाराम मुंशी, हशरत मोहानी जैसे क्रांतिकारी अगुवाई करने लगे। ऐसे में पंडित जवाहर लाल नेहरू और महात्मा गांधी ने भी कानपुर के आंदोलन का पूरा समर्थन किया। लोगों के इस आंदोलन को देख अंग्रेजी शासन की नींद उड़ गई।
अंग्रेजो ने घबराकर इस आंदोलन को शांत करने की कोशिश शुरू की। हड़ताल के चौथे दिन एक वरिष्ठ अंग्रेज अफसर ने यहां आकर लोगों से बात की। इसके बाद होली के पांचवें दिन अनुराधा नक्षत्र के दिन पकड़े गए सभी युवकों को रिहा किया गया। जब नौजवानों को जेल से रिहा किया जा रहा था, तब पूरा शहर उनके लेने के लिए जेल के बाहर इकठ्ठा हो गया था। जेल से रिहा हुए क्रांतिवीरों के चहरे पर रंग लगे हुए थे। रिहा होने के बाद जुलूस पूरा शहर घूमते हुए हटिया बाजार में आकर खत्म हुआ। इनके रिहाई को लेकर यहां जमकर होली खेली गई। इसके बाद यहां होली के दिन से अनुराधा नक्षत्र तक लगातार होली मनाये जाने की परंपरा ही बन गयी।
इस दिन को कानपुर में अब 'गंगा मेला' के नाम से मनाया जाता है। गंगा मेला के दिन यहां भीषण होली होती है। ठेले पर होली का जुलूस निकाला जाता है। ये जुलूस हटिया बाजार से शुरू होकर नयागंज, चौक सर्राफा सहित कानपुर के करीब एक दर्जन पुराने मोहल्ले से होकर गुजरता है। इसके बाद दोपहर 2 बजे तक हटिया के रज्जन बाबू पार्क में आकर जुलूस समाप्त होता है। शाम को सरसैया घाट पर गंगा मेला का आयोजन किया जाता है। यहां शहर भर से लोग एकत्र होते हैं और एक-दूसरे को होली की बधाइयां देते हैं। इस बार भी 26 मार्च,2019 को कानपुर शहर उन क्रांतिकारियों के सम्मान में 'गंगा मेला' मनाने वाला है।
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